पालघर: बोईसर पूर्व में धड़ल्ले से जारी अवैध खनन, प्रशासन बना मूकदर्शक..!
पालघर: बोईसर पूर्व में धड़ल्ले से जारी अवैध खनन, प्रशासन बना मूकदर्शक..!
अखिलेश चौबे
पालघर..! बोईसर पूर्व के लालोंडे, नागझरी, गुंदले और निहे जैसे क्षेत्रों में अवैध खनन धड़ल्ले से जारी है। खदानें अब 200 से 250 फीट की गहराई तक पहुंच चुकी हैं, जो खनन कानूनों के खुल्लमखुल्ला उल्लंघन का प्रमाण है। हैरानी की बात यह है कि खनिज विभाग, राजस्व विभाग और प्रदूषण नियंत्रण मंडल जैसी जिम्मेदार सरकारी एजेंसियां इस मामले में कोई सख्त कार्रवाई करने के बजाय केवल औपचारिकताओं तक सीमित हैं। प्रशासन की यह निष्क्रियता कई गंभीर सवाल खड़े करती है।
प्रशासन की चुप्पी: लापरवाही या मिलीभगत?
स्थानीय ग्राम पंचायतों और नागरिकों ने इस अवैध खनन के खिलाफ कई बार शिकायतें दर्ज करवाई हैं, लेकिन प्रशासन की ओर से ठोस कार्रवाई करने के बजाय केवल खानापूर्ति की जा रही है।
खनिज विभाग: अवैध खनन की शिकायतों पर ड्रोन सर्वे कराने तक ही सीमित, लेकिन खनन माफिया पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया।
राजस्व विभाग: बार-बार की गई शिकायतों के बावजूद निष्क्रिय बना हुआ है। प्रशासन की यह बेरुखी इस बात का संकेत देती है कि शायद खनन माफिया और सरकारी अधिकारियों के बीच गहरी साठगांठ हो सकती है।
प्रदूषण नियंत्रण मंडल: क्षेत्र में बढ़ते धूल प्रदूषण और गिरते जलस्तर को लेकर कोई ठोस कार्रवाई नहीं की जा रही, जिससे आम जनता को भारी परेशानी झेलनी पड़ रही है।
◾खनन नियमों की खुलेआम धज्जियां उड़ाई जा रही हैं
भारतीय खनन नियमों के अनुसार
✔ पायदान (स्टेप माइनिंग) की ऊंचाई 6 मीटर से अधिक नहीं होनी चाहिए।
✔ खदानों की ढलान 60 डिग्री से अधिक नहीं होनी चाहिए।
लेकिन हकीकत यह है कि यहां खनन माफिया बेखौफ होकर इन नियमों को तोड़ रहे हैं।
इस अवैध खनन से स्थानीय नागरिकों को हो रही दिक्कतें
खदानों की गहराई 200 फीट से अधिक हो चुकी है, जो पूरी तरह से गैरकानूनी है।
बस्तियों और सड़कों को नुकसान हो रहा है, लेकिन प्रशासन का इस ओर कोई ध्यान नहीं है।
खदानों में होने वाले विस्फोटों के कारण आसपास के मकानों में कंपन महसूस किया जा रहा है, जिससे लोग दहशत में हैं।
जल स्तर में लगातार गिरावट आ रही है, जिससे पीने के पानी की किल्लत बढ़ रही है।
खनिज विभाग का बचाव— लीपापोती या ठोस कार्रवाई?
खनिज विभाग के जिला अधिकारी संदीप पाटिल ने बताया कि
> "खनन क्षेत्र का ड्रोन सर्वेक्षण किया गया है और खनन पट्टाधारकों से रॉयल्टी भुगतान का विवरण मांगा गया है। यदि अनियमितताएं पाई जाती हैं, तो अतिरिक्त रॉयल्टी वसूली जाएगी और आवश्यक कार्रवाई की जाएगी।"
लेकिन सवाल उठता है—
1. जब अवैध खनन का स्पष्ट प्रमाण मौजूद है, तो केवल ड्रोन सर्वे और रॉयल्टी की बात क्यों?
2. खनन माफिया पर आपराधिक मामला दर्ज कर उन्हें जेल भेजने की कार्रवाई क्यों नहीं की जा रही?
3. पर्यावरण और स्थानीय लोगों को हुए नुकसान की भरपाई कौन करेगा?
प्रशासन की निष्क्रियता = माफिया को खुली छूट
सरकार की निष्क्रियता से यह साफ संकेत मिलता है कि खनन माफिया को प्रशासन का अप्रत्यक्ष संरक्षण प्राप्त है। स्थानीय ग्राम पंचायतें, पर्यावरण कार्यकर्ता और ग्रामीण इस मुद्दे पर लगातार आवाज उठा रहे हैं, लेकिन उनकी शिकायतें सिर्फ कागजों में दर्ज होकर रह गई हैं।
अगर इस अवैध खनन पर तुरंत रोक नहीं लगाई गई, तो यह मामला उच्च न्यायालय या राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) तक जा सकता है। ऐसी स्थिति में खनिज विभाग, राजस्व विभाग और प्रदूषण नियंत्रण मंडल को कानूनी जवाबदेही का सामना करना पड़ सकता है।
क्या पुलिस भी खनन माफिया के साथ मिली हुई है?
खनन माफिया के खिलाफ शिकायत करने वालों को धमकाने के मामले भी सामने आ रहे हैं। ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि
✔ क्या स्थानीय पुलिस भी इस अवैध कारोबार में संलिप्त है?
✔ अगर हां, तो यह पूरे कानून व्यवस्था पर गंभीर प्रश्नचिन्ह खड़ा करता है।
अब देखना यह होगा कि प्रशासन इस गंभीर मुद्दे पर अपनी जिम्मेदारी निभाता है या फिर आंख मूंदकर खनन माफिया को खुली छूट देता रहेगा। लेकिन अगर यही स्थिति बनी रही, तो जनता को न्याय के लिए अदालत और NGT का दरवाजा खटखटाना ही पड़ेगा।
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